हिन्दू पंचांग के अनुसार, रथ सप्तमी का महत्व 16 फरवरी को है। इस विशेष दिन को रथ सप्तमी, अचला सप्तमी या आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सूर्योपासना का महत्व बताया जाता है और यह सूर्यदेव के आशीर्वाद से समृद्धि, ऐश्वर्य, और आरोग्य का वरदान प्राप्त करने का सुअवसर है।
रथ सप्तमी का महत्व
भविष्य पुराण के अनुसार, सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य का आविर्भाव हुआ था। इस दिन भगवान सूर्य ने सारे जगत को अपने प्रकाश से आलोकित किया था। इसलिए इसे अचला सप्तमी कहा जाता है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा से लोगों को अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
रथ सप्तमी की महत्वपूर्ण विधियाँ
रथ सप्तमी को श्रद्धा और भाव के साथ मनाने पर प्रसन्न होकर भगवान भास्कर अपने भक्तों को सुख, समृद्धि, और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं। सूर्य की ओर मुख करके सूर्य स्तुति करने से त्वचा रोग आदि नष्ट हो जाते हैं और नेत्र की ज्योति बढ़ती है। इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से रखने पर पिता-पुत्र में प्रेम बना रहता है।
सूर्य सप्तमी व्रत पूजन विधि और मंत्र
- प्रातः जल्दी उठकर ताजगी से स्नान करें।
- लाल, गुलाबी या केसरिया रंग के वस्त्र धारण करें।
- एक तांबे के लोटे में पवित्र जल लेकर उसमें अष्टगंध, लाल पुष्प और अक्षत डालें।
- “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र के साथ उदय होते सूर्य को अर्घ्य दें।
- तिल के तेल का दीपक सूर्यनारायण के निमित्त अर्पित करें।
- लाल आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके “एहि सूर्य सहस्त्रांशो…” मंत्र का 108 बार जाप करें।
पूजा के नियम
- व्रती को नीले वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए।
- अपाहिजों, गरीबों, और ब्राह्मणों को वस्त्र, भोजन और आवश्यकताओं में सहायता करें।
- व्रती को नमक रहित भोजन या फलाहार करना चाहिए।
रथ सप्तमी व्रत कथा
भविष्य पुराण की कथा के अनुसार, एक वैश्या ने अपने जीवन में कोई दान-पुण्य नहीं किया। बुढ़ापे में जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह ऋषि वशिष्ठ के पास गईं। उसने ऋषि के समक्ष अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। तब वशिष्ठ जी ने उन्हें रथ सप्तमी व्रत के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि इस दिन सूर्य को जल अर्घ्य देकर भगवान सूर्य को दीप दान करने से उसे बहुत पुण्य मिलता है। वैश्या ने ऋषि के कहे अनुसार रथ सप्तमी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से उसे इंद्र की अप्सराओं की मुखिया बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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